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020 | _a9788183618229 | ||
040 |
_aNISER LIBRARY _bEnglish _cNISER LIBRARY |
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041 | _aHindi | ||
082 |
_a82-2 _bKAR-Y |
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100 | _aKarnad, Girish | ||
245 | _aययाति / Yayati | ||
260 |
_aNew Delhi : _bRadhakrishna Prakashan, _c2016. |
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300 | _a91p. | ||
520 | _aहर व्यक्ति जैसे दुःख और द्वन्द्व का एक भँवर है और फिर वह भँवर एक नदी का हिस्सा भी है; और यह हिस्सा होना भी पुनः एक दुःख और द्वन्द्व को जन्म देता है। इसी तरह एक श्रृंखला बनती जाती है जिसका अन्त व्यक्ति की उस आर्त्त पुकार पर होता है कि 'भगवान, इसका अर्थ क्या है?' ययाति नाटक के सारे पात्र इस श्रृंखला को अपने-अपने स्थान से गति देते हैं, जैसे जीवन में हम सब। अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं से प्रेरित पीड़ित इस तरह हम जीवन का निर्माण करते हैं। राजा ययाति की यौवन-लिप्सा, देवयानी और चित्रलेखा की प्रेमाकांक्षा, असुरकन्या शर्मिष्ठा का आत्मपीड़न और दमित इच्छाएँ, और पुरु का सत्ता और शक्ति-विरोधी अकिंचन भाव-ये सब मिलकर जीवन की ही तरह इस नाटक को बनाते हैं, जो जीवन की ही तरह हमें अपनी अकुंठ प्रवहमयता से छूता है। अपने अन्य नाटकों की तरह गिरीश कारनाड इस नाटक में भी पौराणिक कथाभूमि के माध्यम से जीवन की शाश्वत छटपटाहट को संकेतित करते हुए अपने सिद्ध शिल्प में एक अविस्मरणीय नाट्यानुभव की रचना करते हैं। | ||
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_aPlay _xHindi |
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